भारत जैसे विशाल देश के लिए प्रधानमंत्री बनने की योग्यता किसमें है? प्रधानमंत्री पद के लिए एक राजनेता में जिस तरह की नेतृत्व क्षमता अपेक्षित है, वैसी वजनदार प्रशासनिक योग्यता को प्रमाणित करने वाले कम ही है। इससे यह नहीं अर्थ निकाल जाना चाहिए कि भाजपा अथवा कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों के अग्रणी तथा स्वीकार्य नेताओं में मौका नहीं मिला तो नेतृत्व क्षमता नहीं है या उनके द्वारा शासन संचालन की क्षमता गुणों पर संदेह किया जाए।
सुरक्षित लोकतंत्र में सौ करोड़ मतदाता राजनीति पर खुली किताब की तरह विचार व्यक्त करती है। चाहे मतदान करे या न करे और खुद को अपने घर दुकान गाड़ी कारखाने चलाने की समझ हो या ना हो मगर देश कैसे औ किसे चलाने की अक्ल है, इसपर तुंरत ज्ञान बघार देती है।
इंडिया गंठबंधन में इस पद के लिए कई नामों का जिक्र है लेकिन पूर्ण बहुमत की सम्भावना कमतर लगने से प्रधानमंत्री बनने की ख्वाहिश बस बिल्ली के भाग से ‘गर छींका टूटे पर रह गयी है। मोदी सरकार को तीसरा मौका मिलेगा या नहीं यह चार जून को चुनाव आयोग की मशीनों पर पर्दा हटने के बाद पता लगेगा। साधारण मतदाता में विपक्ष को प्रत्याशी आधार पर समर्थन हो सकता है पर पार्टी निशान पर कम लगता है क्यांकि जनता मान रही है कि चार सौ ना सही, मगर बहुमत है तो भाजपा को। इसके साथ और एक वजह भी यह भी है कि मोदी की छवि के कारण सामान्यतौर पर अराजनैतिक रहने वाली आम जनता में भाजपा को सत्ता बेदखल करने के इच्छा कम है।
मोदी के अलावा यदि कोई और तब प्रधानमंत्री के नाते पसंदीदा कौन है? भाजपा के नेताओं में यदि देखा जाए तो नेपथ्य में रहे कई नाम ऐसे है जिनको जनता पंसद करती है। पथपुरूष गडकरी यदि जनता के मन में बस गये तो राजनाथ सिंह का नाम भी जुबां पर है। वहीं जनता के कानों में गंगा यमुना के तट में योगी आदित्यनाथ का नाम गूंज रहा है तो नर्मदा चम्बल के किनारे शिवराज चौहान के कद देखते हुए प्रधान पद के लिए भी गुंजन करता है। योग्यता, गुण और विचारवार्ता के मापदण्ड में ब्रह्मपुत्र की घाटी में गर्जन हेमंत सेरना नाम का है।
कांग्रेस में से केवल प्रियकां राहुल और उनकी पंसद ही प्रधानमंत्री के लिए रह गयी है। जनता के मन में जयराम रमेश, अशोक गहलोत और मल्लिकार्जुन खड़गे के लिए मानो मनमोहन सिंह की पुर्नरावर्ती है। इंडिया गठबंधन में ममता दी, अके, एम.के.स्टालीन सरीखे नेताओं के साथ मन में मंसूबे तो शरद पवार, मायावती, नीतीश कुमार, नवीन पटनायक भी लेकर बैठे हैं। वैसे तो यह पद भी ऐसा है कि पैर कब्र में हो तो भी बंदा उसैन बोल्ट, बेन जानसन, पी.टी उषा से तेज भाग आयेगा।
राजनैतिक बिसात पर भाजपा प्रचार में दिये गये रूझानों में केवल एक बात ही जनता के सामने आयी है कि चार सौ या कम मगर सरकार भाजपा की ही है। इसने राजनैतिक रण में विपक्ष की कार्यकर्ता दल के मनोबल को जबरदस्त चोट पहुंचा दी है। यही कारण है कि आमूमन दस साल के शासन में जब जनता में सत्ता विरोधी मनोभाव की जरा बहुत भी संभावना बनी होती तो भी नयी रणनीति के चुनावी अभियान ने इसे उभरने नहीं दिया।
भाजपा की वर्तमान संसदीय दल की समिति और कार्यकारणी सदस्यों में सर्वाधिक समर्थक तो चुनाव जिताऊ अमित शाह के ही है। साथ ही संभावना भी है कि जीत कर आने वाले सांसदों में अमित शाह समर्थक सांसद ही सबसे अधिक होगें। मोदी के प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनने के बाद चुनावी चाणक्य शाह पर आरोप लगा था कि प्रशासन और सरकार पर नियंत्रण में दखल रोकने के लिए लाल कृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज, मुरली मनोहर जोशी, शांता कुमार और जसवंत सिंह जैसे वरिष्ठ भाजपा नेताओं को पहली पाली में और इसी दर्ज पर निशंक रमेश पोख्रियाल, हर्षवर्द्धन, प्रकाश जावेडकर, नरेन्द्र सिंह तोमर जैसे नेताओं को दूसरी पाली में दरकिनार किया गया। ऐसे में यदि किसी वजह से मोदी नही बनते हैं, तो भाजपा सांसदों ने भी सभी वरिष्ठ को भी सत्तर पार की उमर के कारण मार्गदर्शक मण्डली में बैठाकर राजनैतिक दावंपेच के माहिर अमित शाह के लिए एकमेव समर्थन कर दिया तो चकित नहीं हो।
- Dr. Atul