डॉ.अतुल कुमार
जिस तरह से भारतीय निर्यात पर अमेरिका सहित पश्चिमी देशों ने करों की दर को बढ़ाया है इसकी काट में केन्द्र सरकार का त्वरित निर्णय कर वसेक दरों में बदलाव करना स्वागत योग्य कदम है। केन्द्र सरकार ने निर्यात में गिरावट से आने वाले लाभ की कमी पर राहत देने का उचित निर्णय वसेक करदर में गिरावट का सामयिक निर्णय सही लिया है। यदि देखा जाए तो डेढ़ अरब जनसंख्या के स्वदेश ही में उत्पादों के भारी खपत की गुंजाइश है। सीतारमण के वित्त मंत्रालय ने वसेक कर दरों में प्रत्यक्ष तौर पर में भारी छूट प्रदान करना तय किया है। यही दर परोक्ष रूप से देश के हर राज्य में उद्योगों को कच्चे माल क्रय में राहत देगा। इसके दीर्घकालिक प्रभाव में सभी तरह के उत्पादनों में लागत मूल्य में भारी कमी कर देगा। इससे एक बार फिर मंहगाई थमने की संभावना बनेगी।
राष्ट्र विकास में ऊर्जा अत्यंत महत्वपूर्ण कारक है। इसलिए यदि ऊर्जा सुलभ और सस्ती रहेगी तो उद्योगों को सस्ते उत्पाद प्रदान करने का रास्ता मिलेगा। सभी तरह की ऊर्जा उत्पादन में आणविक ऊर्जा और फिर सौर उर्जा की उत्पादन संयत्र इकाई भारी निवेश से लगाई जाती है परन्तु ऊर्जा सबसे कम खर्च दर पर उत्पन्न होती है। वर्तमान में कुल ऊर्जा उत्पादन क्षमता के आकलन के आधार पर सौर ऊर्जा संयत्र की क्षमता में वृद्धि हो कर लगभग पच्चीस प्रतिशत तक बन गयी है परन्तु कष्ट के साथ कड़वी बात कहना पड़ती है कि खपत में सौर ऊर्जा का उपयोग अंश केवल मात्र एक तिहाई उपयोग में आ रहा है जोकि कुल खपत में महज आठ फीसदी तक ही है।
सरकारों की जारी विद्युत दर हर क्षेत्र और अंचल में भिन्न भिन्न है। आम तौर पर यह दर कम से कम आठ रु से अधिकतम बीस रु प्रति इकाई तक है। उद्योगों के लिए बिजली की निर्बाध आपूर्ति के साथ कम दर की उपलब्धता उतनी ही आवश्यक है। मांग पूर्ति में कुल ऊर्जा उत्पादन के चालीस से अधिक भाग उद्योग का है। फिर भी आवासीय बिजली दरों से उद्योगों की बिजली दरें अधिक ही जारी हैं। कुछ समय पहले तक सभी सरकारों द्वारा उद्योगों तथा व्यवसायिक क्षेत्र को बिजली महंगी तथा लाभ की दर के साथ प्रदान की जाती रही है। मगर अब विचार बदल रहें है। बड़े उपभेक्ता होने के नाते औद्यौगिक क्षेत्रों को कम मूल्य पर आपूर्ति का विचार बन रहा है।
वैसे तो दुनिया भर में सबसे कम लागत की ऊर्जा रूस में बताई गई है। हालांकि रूस के साथ चीन ने भी सामान्य औद्योगिक बिजली दरों को कम करने के उपायों को लागू करना जारी रखे हुए है। विकसित देशों सहित कई अन्य देशों में आवासीय ऊर्जा की लागत सबसे कम है, और अमेरिका जैसे देश भी उद्योगों को कम दर पर बिजली देने का प्रयास कर रहें है।
वक्त की नजाकत को भांपते हुए बिजली दरों में भी कमी प्रदान करनी चाहिए ताकि उत्पादन लागत में भी कमी आये। बात इतनी है कि भारतीयों की उत्पादों के मंहगें होने की सूरत में में क्रय क्षमता कमतर हो जाती है। यदि करों को स्थिर करने के साथ ऊर्जा दरों में भी प्रतिद्वंदिता के इस वातावरण मे सस्ते उत्पादन पर लाभ का अधिकारी उपभोक्ता पहले और एद्योगपति बाद में तथा अंततः राष्ट्र ही होगा।
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