सत्याग्रहियों से दोयम दर्जे का क्यों व्यवहार-शैलेंद्र मिश्र

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गोरखपुर। उत्तर प्रदेश लोक निर्माण विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार के विरुद्ध 1079 दिनों से चल रहे सत्याग्रह संकल्प पर व्यवस्था के पोषकों की उदासीनता संदिग्ध कार्य प्रणाली का परिचायक है।
यह सहजता से गले उतर नहीं रहा है कि आखिर 1079 दिनों से प्रचलित सत्याग्रह संकल्प पर वजीरे रियासत खामोश क्यों है? कहीं सत्याग्रहियों के कथनानुसार भ्रष्ट अभियंताओं की भ्रष्ट कार्यगुजारी में शासकीय तंत्र की बराबर की भागीदारी तो नही है?
जबकि कारित भ्रष्टाचार की प्रथम दृष्टया पुष्टि कैग रिपोर्ट से हो रही है। ऐसे में सरकार की निष्क्रियता से प्रतीत हो रहा है की भ्रष्ट कार्य गुज़रियो के प्रति मुखर आवाज को दबाने की संगठित दमनकारी नीति पर वजीरे रियासत अमादा है।
शायद यही कारण है कि जनसामान्य का अहिंसात्मक आन्दोलनों में आस्था आहत है। जिसके परिणाम स्वरूप लोकतंत्र में अहिंसात्मक आंदोलन व सत्याग्रह संकल्प का वजूद नदारद है और प्रदेश व देश में निरंकुश बेखौफ भ्रष्टाचार का तांडव चल रहा है।
वर्तमान सरकारें सत्याग्रहियों व आंदोलनकारियों का उपेक्षा कर लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में आस्था आहत करने के गंभीर अपराध को अंजाम देते हुए अपने सरपरस्ती में निरंकुश भ्रष्टाचार के व्यापार को फलने फूलने का खुली छूट प्रदान कर रखा है।
जो आने वाले दिनों में व्यवस्था के पोषकों को गंभीर परिणाम भुगतने के संकेत है।

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