मुंगेर के गंगा नदी से शुरू हुआ था छठ पर्व

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मां सीता ने राम को ब्रह्म पाप से मुक्त कराने के लिए की थी छठ

मुंगेर के गंगा नदी के तट पर आज भी विराजमान है मां सीता का चरण चिन्ह

मुदगल ऋषि के सामने हनुमान का टूटा घमंड

सूर्यगढ़ा के कटेहर गांव के गौरी शंकर धाम में गिरा हनुमान

गौरीशंकर धाम में उल्टा हनुमान की है प्रतिमा स्थापित

डॉ शशि कांत सुमन
मुंगेर। मुंगेर में त्रेता युग से नेमनिष्ठा के साथ छठ पर्व हो रही है । मुंगेर जिले का इतिहास अति प्रचीन है। आदि काल में ऋषि मुगदल की तपोभूमि के रूप में मुंगेर की चर्चा है। रामायण काल में इसे मुगदलपुरी कहा जाता है। मुंगेर आज भी यह इतिहास के कई धरोहर को समेटे अपनी प्राचीनता की कहानी कह रहा है। गंगा नदी के तट पर बसे इस शहर ने कई शहरों को जन्म दिया जो आज बिहार के विकसित शहरों की श्रेणी में है। जंगल व पहाड़ों की भौगोलिक स्थिति के बीच बसा यह शहर आबादी के अनुसार राज्य का 11 वां बड़ा शहर माना जाता है।
बाल्मीकि रामायण व आनंद रामायण के पृष्ठ संख्या 31 और 36 इतिहास के पन्नो में मुंगेर में सबसे पहले छठ पर्व मां सीता के द्वारा करने का उल्लेख मिलता है। मुंगेर का सीघा जुड़ाव रामायण काल से है। मुंगेर में ही सीताकुंड है, जहां मैया सीता अग्नि परीक्षा दी थी। जहां मैया सीता छठ पर्व की थी उसे सीता चरण कहा जाता है। जो गंगा के तट पर अवस्थित है। लंका विजय के दौरान राम ने रावण की हत्या कर दी। रावण ब्राह्मण थे जो ब्रह्मा के वंशज थे। राम ब्रह्म हत्या पाप से मुक्ति दिलाने के लिए मुगदल ऋषि ने राजसूय यज्ञ के साथ छठ पर्व करने की सलाह दी। श्रीराम ने मुदगल ऋषि की सलाह पर श्रृंगी ऋषि के नेतृत्व में पूर्व मुंगेर जिले वर्तमान में लखीसराय जिले के सूर्यगढ़ा प्रखंड के पहाड़ की तराई में अवस्थित श्रृंगी ऋषि धाम में राजसूय यज्ञ की तैयारी शुरू कर दी। यज्ञ शुभारंभ करने का समय भी तय हो गया। लेकिन श्रृंगी ऋषि ने कहा कि जब तक मुदगल ऋषि नहीं आते है तब तक राजसूय यज्ञ का शुभारंभ नही हो सकता है। लेकिन मुदगल ऋषि को जल्द कौन ला सकता है। इस पर मंथन होने लगा। इस श्रृंगी ने कहा कि हनुमान ही मुदगल ऋषि को जल्द ला सकते है। भगवान राम का आदेश हुआ और हनुमान मुदगल ऋषि को लाने के लिए मुंगेर के प्रस्थान कर गए। वहां पहुंचने पर हनुमान ने देखा कि मुदगल ऋषि धयान निंद्रा में सोए हुए है। भगवान राम का आदेश था कि जल्द लाना है। यहां मुदगल ऋषि ध्यान निंद्रा में है। इस वक्त हनुमान को अपने बल का घमंड होने लगा कि क्यों नहीं मुदगल ऋषि को बिना जगाए ही पर्वत को ही उठाकर लेकर चले जाए। इतना घमंड हनुमान कर ही रहे थे कि मुदगल ऋषि गए। और यहां आने का प्रयोजन के बारे में पूछा। हनुमान ने राजसयू यज्ञ में जाने के बारे बताया। लेकिन हनुमान का बल का घमंड टूटना था। इसलिए मुदगल ऋषि ने हनुमान से कहा चलो कमंडल उठाओ उसके बाद चलते है। हनुमान तो सोचा कि कमंडल ही तो उठाना है। हनुमान कमंडल उठाने लगा तो कमण्डल जस तस रहा। हनुमान को गुस्सा आया और अपनी पूंछ को कमंडल में लपेट उठाना शुरू किया लेकिन फिर भी कमंडल जस तस रहा। हनुमान क्रोधित होकर पूरा ताकत झौंक दी। कमण्डल तो नहीं हिला, लेकिन हनुमान 9 योजन दूर सूर्यगढ़ा के कटेहर गांव के गौरी शंकर धाम के नजदीक जा गिरा। आज भी गौरी गौरी शंकर धाम में प्रमाण के तौर पर हनुमान की उल्टी प्रतिमा स्थापित है। कहीं भी हनुमान जी उल्टी प्रतिमा नहीं है। हनुमान के होश आने पर उसका घमण्ड टूटा। और पुनः आकर हनुमान ने मुदगल ऋषि से अपनी घमंड के लिए माफी मांगी। इसके उपरांत मुदगल ऋषि ने हनुमान को बताया कि श्री राम को गंगा स्नान के साथ सीता को सूर्योपासना के उपरांत ही यज्ञ का शुभारंभ होगा। इस खबर को हनुमान जी राम को श्रृंगी ऋषि धाम में सुनाई। मुदगल ऋषि के अनुसार ने मुंगेर के कष्टहरणी में गंगा स्नान के साथ मैया सीता ने छह दिनों तक छठ पर्व की।

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